जब भावनाएं बहकने लगें: एक विवाहित स्त्री की आत्मसंघर्ष की सच्ची कहानी
44 वर्ष की एक महिला की सोशल मीडिया पर 38 वर्षीय पुरुष से गहरी दोस्ती हो गई। दोनों की ज़िंदगियाँ लगभग समान थीं – एक जीवनसाथी, दो बच्चे, और एक व्यवस्थित पारिवारिक जीवन। फिर भी, दोनों एक-दूसरे की ओर क्यों आकर्षित हो रहे थे? क्यों कभी-कभी सब कुछ होते हुए भी कुछ अधूरा लगता है? शायद मन की कोई खाली जगह जो कोई और भरना चाहता है।धीरे-धीरे यह दोस्ती एक भावनात्मक लगाव में बदल गई। पुरुष ने अब दोस्ती की सीमा से आगे बढ़ते हुए शारीरिक नज़दीकी की इच्छा जताई। महिला के मन में असमंजस था – एक ओर अच्छी दोस्ती थी, दूसरी ओर उस दोस्त के मीठे शब्दों ने उसे भ्रमित कर दिया। अंततः एक दिन दोपहर 3
बजे, वो अपने सारे तर्कों को परे रखकर उससे मिलने निकल पड़ी। जब वो मिली, उसने पहली बार अपने पति के अलावा किसी और का स्पर्श महसूस किया। वो खुद हैरान थी कि क्या सच में वो इसे स्वीकार कर रही है? और क्यों? तभी उसे सात साल पहले की एक घटना याद आई – जब उसने अपने पति को घर में काम करने वाली 20 वर्षीय युवती के साथ आपत्तिजनक स्थिति में पकड़ लिया था। वह घटना उसके जीवन का सबसे गहरा आघात थी। उसका विश्वास टूट गया था। पति ने माफ़ी माँगी, कहा "मुझसे गलती हो गई", लेकिन उस स्त्री के मन से वो दर्द कभी पूरी तरह मिटा नहीं।
शायद यही अधूरा विश्वास, यही टूटा आत्मसम्मान, उसे आज इस रास्ते तक ले आया। पर जब वह पुरुष उसे बांहों मेंभरकर चूमने लगा, तो वह बहकने लगी। लेकिन तभी उसके भीतर की स्त्री, माँ, पत्नी और बेटी जाग उठी। उसकी आँखों के सामने उसका परिवार आ गया – पति, बच्चे, माता-पिता, भाई-बहन। उसे महसूस हुआ कि अगर आज उसके पिता होते, तो उन्हें यह देखकर कितना दुख होता। उसे स्वामी समर्थ की मूर्ति याद आई – क्या वो उनके सामने खड़ी हो सकती है?
उसका अंतर्मन एक झटके में जाग गया। उसने तुरंत उस पुरुष का हाथ झटक दिया और कहा – "हम यहीं रुकते हैं।" वह पुरुष समझदार था, उसने भी ज़्यादा ज़ोर नहीं दिया। महिला ने राहत की साँस ली और घर लौट आई।
इन हालातों में संभोग करना हो सकता है नुकसानदायक – आयुर्वेद की चेतावनी
वह सीधे बाथरूम में गई और अपने कपड़ों समेत ठंडे शावर के नीचे खड़ी हो गई। वह बस बहती रही – पानी के साथअपनी भावनाओं, इच्छा, मोह और भ्रम को भी बहाती रही। जब मन और शरीर शांत हो गया, तो वह सीधे मंदिर गई। सासू माँ पहले ही दीप जला चुकी थीं, उन्होंने तुळसी (पवित्र पौधे) के सामने एक और दीप जलाने को कहा। जब उसने दीप जलाया, तो लगा जैसे तुळसी काँप उठी हो – और वह खुद भी। उसका हाथ काँपने लगा।
उसे अहसास हुआ – क्या सिर्फ इसलिए कि उसके पति ने एक बार गलती की थी, वह भी उसी राह पर चलने का अधिकार रखती है? नहीं। उसके संस्कारों ने उसे सही राह दिखाई। उसने ठान लिया – वह उस पुरुष से अब कभी नहीं मिलेगी। उसने अपने मोबाइल का नेट ऑन किया और उसे सोशल मीडिया से ब्लॉक कर दिया – सिर्फ फोन से नहीं, अपने मन से भी।कभी-कभी हमारे ज़ख्म हमें ग़लत राह पर ले जाने की कोशिश करते हैं, लेकिन वही पल हमें सबसे सच्चे निर्णय लेने का मौका भी देते हैं। गलतियों का बदला गलती से नहीं लिया जाता। जो संयम रख लेता है, वही वास्तव में मजबूत होता है।

0 टिप्पणियाँ