ईरान का परमाणु प्लांट: 20 साल की तैयारी और दुनिया के लिए खतरे की घंटी ( Iran nuclear program )
एक पहाड़ के नीचे छुपा बम का सपना ( Iran’s hidden nuclear bunkers )
ईरान ने बीते 20 वर्षों में दुनिया की आंखों में धूल झोंकते हुए एक ऐसा न्यूक्लियर प्रोजेक्ट खड़ा किया, जो आज पूरी मानवता के लिए खतरे की घंटी बन चुका है। फोर्दो न्यूक्लियर प्लांट — जिसे ईरान ने तेल बेच-बेचकर, खरबों डॉलर की लागत से खड़ा किया — सिर्फ एक प्लांट नहीं, बल्कि एक लंबी साजिश का हिस्सा था।
यह प्लांट कोई साधारण इमारत नहीं है। इसे पहाड़ को काटकर, सैकड़ों फीट नीचे बंकर बनाकर स्थापित किया गया है, ताकि कोई भी बाहरी हमला इसे नुकसान न पहुँचा सके। ईरान ने दुनिया भर से स्मगलिंग कर तकनीक जुटाई, चीन से चुपके से यूरेनियम लिया, और न्यूक्लियर रिएक्टर को ठंडा रखने के लिए भारी हीट एक्सचेंजर, हेवी वॉटर प्लांट और कूलिंग रॉड निर्माण केंद्र तक बनाए।
20 साल की बातचीत और खोखली वादाखिलाफ़ी ( Iran Hezbollah support )
पिछले दो दशकों से IAEA (इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी), संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, इज़राइल और यूरोपीय यूनियन ईरान से इस पर बातचीत कर रहे थे। समझौते, संधियाँ, और वार्ताएं होती रहीं। पर अंदर ही अंदर ईरान एक भयानक योजना रच रहा था।
लीक हुए दस्तावेज़ों से खुलासा हुआ कि ईरान टैक्टिकल न्यूक्लियर बम बनाकर उन्हें हमास, हिजबुल्ला और हूथी जैसे आतंकी संगठनों को सौंपना चाहता था — यानी ऐसे आतंकी जिन्हें कोई "राज्य" प्रतिनिधित्व नहीं करता।
जब जिम्मेदारी नहीं, तो शर्म भी नहीं?
ईरान की मंशा थी कि इन आतंकी संगठनों द्वारा किए गए परमाणु हमलों की ज़िम्मेदारी किसी भी देश पर न जाए। लेकिन ये कोई कल्पना नहीं, हकीकत है — हूथियों को बैलिस्टिक मिसाइल ईरान ने दी और दोनों पक्षों ने इसे सार्वजनिक रूप से स्वीकार भी किया है।
7 अक्टूबर को हुआ हमला भी इसी योजना का हिस्सा था। ईरान की बदनाम IRGC (इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स) ने हमास को रॉकेट, तकनीक और सुरंग बनाने की पूरी व्यवस्था उपलब्ध कराई — और यह सब राहत सामग्री की आड़ में हुआ।
नफ़रत की कोई सीमा नहीं ( Iran Israel conflict reason )
ईरान और इज़राइल की ना कोई सीमा मिलती है, ना कोई सीधा विवाद। फिर भी ईरान सिर्फ इसलिए इज़राइल से घृणा करता है क्योंकि वह एक यहूदी राष्ट्र है। धार्मिक नफ़रत को हथियार बनाकर जो जहर ईरान फैला रहा है, वह पूरी दुनिया के लिए चेतावनी है।
खुद खामेनेई के ट्विटर हैंडल पर नजर डालिए — हर दूसरा ट्वीट "Zionist" यानी यहूदी शब्द से भरा होता है। क्या कोई और राष्ट्राध्यक्ष इस हद तक किसी धर्म के खिलाफ ज़हर उगलता है?
अमेरिका भी अब मैदान में उतर चुका है ( America joins Israel-Iran conflict )
इतने वर्षों तक मध्यस्थता और चेतावनी देने वाले अमेरिका ने अब खुद मोर्चा संभाल लिया है। ईरान समर्थित आतंकी संगठनों द्वारा इज़राइल पर लगातार हमलों, और 7 अक्टूबर के बर्बर हमले के बाद अमेरिका की रणनीति पूरी तरह बदल गई है।
अब सिर्फ बातचीत नहीं, डायरेक्ट मिलिट्री इंवॉल्वमेंट देखने को मिल रही है। अमेरिका ने:
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अपने नेवी कैरियर ग्रुप को इज़रायल के पास भेजा,
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रेड सी और मिडल ईस्ट में एयर डिफेंस सिस्टम तैनात किए,
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और हूथी विद्रोहियों द्वारा चलाए गए ड्रोन और मिसाइलों को सीधे निशाना बनाकर गिराया।
इससे यह साफ हो गया है कि अब अमेरिका भी इस संघर्ष में एक प्रत्यक्ष भागीदार है — न सिर्फ इज़राइल की सुरक्षा के लिए, बल्कि विश्व शांति बनाए रखने के लिए।
सबको जीने का अधिकार है — यहूदी हो या हिंदू
इस धरती पर हर धर्म, हर विचारधारा को सम्मानपूर्वक जीने का हक है — चाहे वह यहूदी हों या हिंदू। अगर कोई उन्हें मिटाने की कोशिश करेगा, तो उसे यह समझना होगा कि यह अब 19वीं सदी की दुनिया नहीं है। अब वक्त बदल चुका है। जवाब मिलेगा, वो भी करारा।

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