गृहिणी का अमूल्य योगदान: जो दुनिया अक्सर अनदेखा कर देती है
हर सुबह की शुरुआत एक प्याली चाय से होती है। वो भी बिल्कुल हमारी पसंद की – कम शक्कर वाली, गर्मागर्म और सही टाइम पर। नाश्ते का मेन्यू तय होता है, बर्तन धुले होते हैं, बच्चों की यूनिफॉर्म तैयार होती है।
ये सब जैसे ‘अपने आप’ होता है...
लेकिन हकीकत ये है कि ये सब कोई करता है – वो।
वो – यानि पत्नी, जीवनसाथी, गृहिणी।
वो जो घर की धड़कन है, घर की असली शक्ति है।
जब तक वो घर में होती है, सब कुछ सामान्य लगता है। लेकिन जब कुछ दिनों के लिए वो घर से बाहर जाती है, तब हर छोटी-बड़ी चीज़ खुद करनी पड़ती है। और तब समझ आता है कि घर अपने आप नहीं चलता – वो चलाती है।
उसकी मेहनत, त्याग और स्नेह बिना कहे सबके लिए होते हैं।
- सुबह की चाय से लेकर रात के खाने तक
- बच्चों के होमवर्क से लेकर पापा की दवाई तक
- सफ़ाई, कपड़े, सब्ज़ी, राशन – हर चीज़ में उसकी भूमिका होती है
जब वो नहीं होती, तो घर की चुप्पी बोलती है।
हर कोना जैसे कहता है – "वो नहीं है..."
भले ही वो “घर पर ही रहती है”, लेकिन घर को घर बनाना उसी की वजह से मुमकिन है।
उसकी गैरमौजूदगी में ही उसकी अहमियत का अहसास होता है।
उसका काम “मोल” का नहीं, “अमोल” है।
"गृहिणी का अमूल्य मूल्य – जो समाज नहीं समझता"
आज भी हमारे समाज में एक कड़वा लेकिन सच है –
जो महिला घर संभालती है, बच्चों की परवरिश करती है, पूरे घर की ज़िम्मेदारी अपने कंधों पर उठाती है, अगर वो पैसे नहीं कमाती, तो उसके काम को "काम" नहीं माना जाता।
उसे अक्सर सुनना पड़ता है –
"तू करती ही क्या है? तू तो घर पर ही रहती है!"
यह वाक्य सिर्फ एक बात नहीं कहता, ये उस महिला के त्याग, मेहनत और समर्पण को पूरी तरह नकार देता है।
जब वही महिला अगर बाहर नौकरी करने लगे, पैसे कमाने लगे – तो लोग अचानक उसे सम्मान की नज़रों से देखने लगते हैं।
लेकिन जो महिला केवल घर संभालती है, उसके लिए सम्मान नहीं, बल्कि ताने होते हैं।
यह कितना बड़ा अन्याय है!
घर संभालना कोई आसान काम नहीं –
- हर दिन का मेन्यू प्लान करना
- बच्चों की पढ़ाई, स्कूल, होमवर्क
- बड़ों की दवाइयां, समय पर भोजन
- सफाई, कपड़े, राशन, बिल...
ये सब कुछ बिना वेतन, बिना छुट्टी, बिना तारीफ़ के रोज़ करना – यही उसकी नौकरी है।
पर फिर भी समाज उसके काम को ‘काम’ नहीं मानता, क्योंकि वो पैसा नहीं कमाती।
क्या सिर्फ पैसे कमाना ही काबिलियत की पहचान है?
जो महिला घर पर रहकर पूरे परिवार को संवारती है, उसकी मेहनत का कोई मूल्य नहीं?
उसका त्याग, उसका समय, उसका प्रेम – सब शून्य?
अब वक्त आ गया है कि हम ये सोच बदलें।
घर में रहने वाली हर महिला सिर्फ “गृहिणी” नहीं, वो घर की रीढ़ होती है।उसका काम सबसे बड़ा और सबसे ज़रूरी होता है।
उसे भी वही इज्ज़त, वही सम्मान मिलना चाहिए जो एक कमाने वाले को मिलता है।
क्योंकि वो पैसे नहीं, लेकिन पूरे परिवार का जीवन संवारती है।

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